रविवार, 16 जनवरी 2011

वक़्त

वक़्त बदल गया हैं,
पर ज़ज्बात वही हैं
उम्र बढ गई हैं
पर औकात वही हैं         
सोचता हूँ अब भी
उम्र गुजर गई रिश्तो- रस्मो
को निभाने में
पर रिश्तों की बात वही हैं
आज भी रिसते हैं ज़ख्म मेरे
क्यों कि रिश्तों की मार वही हैं

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