बुधवार, 9 मार्च 2011

नियति

एक ख्वाब था मैं,
जिसे देखा उसने,
एक प्यार था मैं,
जिसे पाला था उसने
अपने सीने में,
एक गीत था मैं
जिसे सजाया था
उसने अपने होंठो पे ,
पर एक ख्वाब को
टूटना था और मैं टूट गया,
प्यार मिट जाना था,
और मैं मिट गया
गीत उतर जाना था लबों से
 और मैं  उतर गया ...

        और अब
अब मैं हूँ और उसकी यादें
उसकी हँसी और उसकी बाते
पर नहीं हैं अब वो कही
अब भी सताती हैं बाते उसकी अनकही
यही था नसीब मेरा
और मुकद्दर  मेरा
जिसे लिखा विधि ने मेरे हिस्से में