सोमवार, 20 जून 2011

सपनीले विचार

क्या सरकारी स्कूलों  में राजनेताओ , उद्योगपतियों  ,सरकारी कर्मचारियों  के बच्चों  के भेजने से समाज और स्कूलों के व्यवस्था में परिवर्तन नहीं हो सकता , अगर हो सकता हैं तो वे क्यों नहीं भेजते ? अगर उनको वास्तव में इस देश की चिंता हैं , तो  वे सरकारी अस्पतालों में जाएँ , सरकारी दफ्तरों में खुद जाये | इसका असर भारत के प्रगति में अवश्य पड़ेगा और भ्रष्टाचार से लड़ने में सहायक  होगा |
                           आज भारत भूमि को पुनः एक पुनर्जागरण की आवश्यकता हैं , एक बार और कबीर की जरुरत आन पड़ी हैं जो समाज को वास्तविक ज्ञान और अपने अतीत और वर्तमान से सामंजस्य बैठाना बताये| छोटे परदे के बाबा लोगो के प्रवचन के अलावा जीवन और समाज की कटु सचाइयों से अवगत कराये और आम जनता  को भी  "दया धर्म को मूल हैं" को आत्मसात करना होगा  और कोई मंदिरों के कतारबद्ध लोगो में चेतना का जागरण कराये कि , कर्म -और धर्म में दिखावा छोड़ के आम जीवन में जीवों के प्रति, समाज के प्रति अपने कर्तव्य का पालन करे | 
                        आधुनिकता विचारो से जनम लेती हैं  न कि पहनावे से , इस तरह से कोई भारतीय रहन -सहन और परिधानों पे इन्हें गर्व करना सिखाये  ताकि आने वाले जेनरेशन  एक हिन्दुस्तानी होने पर गर्व कर सके और उनके पास भी अपना कुछ गर्व करने लायक अतीत हो | क्या आने वाली नस्लों को ये पढना होगा कि एक लोकतान्त्रिक देश में  कैसे रात के साये में कुछ सोये हुए लोगो पर जुल्म हुए , राजनीती शास्त्र में घोटालो के बारे शिक्षा दी जाएगी | हम आधुनिक  तो होते जा रहे हैं लेकिन हमारे मनीषी और विद्वान लोग कुछ ऐसा नया नहीं खोज पा रहे हैं जिससे वर्तमान पीढ़ी का जीवन सरल और सुगम हो और मानवता हमे याद कर,अगर ऐसा हो भी रहा हैं तो ये आम लोगो तक नहीं पहुच पा रहा  , शायद  अब आम जनता के बारे कोई नहीं सोचता | राजनेता, वैज्ञानिक , लेखक अब अपना अपना जीवन वृत्ति सँभालने में लगे हैं , देश के लिए और समाज के लिए कोई सपना नहीं हैं , अगर हैं भी तो वे लोग उसे ठीक तरीके से आम जन तक नहीं पंहुचा रहे | देश का आम आदमी आज दिग्भर्मित हैं , भविष्य कुछ साफ़ नहीं नज़र आता कि हम किस क्षेत्र में प्रगति कर रहे हैं , वैसे तो हमारे हुक्मरान बता तो रहे हैं कि हम चौमुखी विकास कर रहे हैं पर आम आदमी का विकास उनके विकास से अलग हैं | आम आदमी को अस्पताल में दवाइयां , रोज़गार के साधन , सड़के और अपराध मुक्त समाज  चाहिए न कि मोबाएल फोंस |
                 रिअलिटी शो के आडिशन के लिए उमड़ती नवजवानों के भीड़ इस बाज़ार कि तस्वीर हैं , और कम्पनियों को ये बाज़ार प्यारा हैं न कि उनका टैलेंट | और आज इन्ही बाजारू चमक दमक में भारतीय सोच और दर्शन कही दबा सा महसूस हो रहा हैं , और आज फिर से भारत को एक  कबीर , स्वामी विवेकानंद , और महात्मा गाँधी , कि जरुरत हैं | परिस्थितियां ही मानव व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं तो क्या पता समय ऐसे ही
व्यक्तित्व कि रचना कही कर रहा हो , पर  इस वक़्त हिंदुस्तान को ऐसे शख्स कि सख्त  जरुरत हैं |

सोमवार, 13 जून 2011

कुछ अपनी - कुछ दुनिया की

कोई देवदूत भी नहीं आता ,  
दुनिया के  करोड़ों मज़लूम इंसानों तक
जो भूख -लाचारी , गरीबी ,
युद्ध और आतंक के साये में जी रहे हैं अब तक,
इनके आलावा वो भी हैं जिनकी चेतना छीन ली हैं किसी ने ,
जिन्हें दुनिया कहती  हैं पागल, और देती हैं दुत्कार ,
जब जरुरत हैं उनको प्यार की ,
इबादतगाहों से झाँकता  नहीं हैं कोई
अब इनका हाल जानने को,
 उन्हें भी हैं किसी मसीहा की तलाश औरो से ज्यादे ,
पर शायद  नहीं हैं ईश्वर ,खुदा  के पास फुर्सत ,
अरे हाँ  पहले भी कहाँ  थी फुर्सत  इनके पास,
जन्म से लेकर मृत्यु तक डराने की चीज़ रहे हैं ये ,
इनका खौफ  सिर्फ गरीबो और मज़लूमो को ही होता हैं ,
जिनके पास हैं ताकत और दौलत वो इनसे कब  डरे हैं, जो अब डरेंगे , 
फिर वो क्यों  न अपनी तिजोरियां  भरेंगे ,
और जिन्हें अपने पेट भरने को  मिलती नहीं रोटी
वो कहाँ से अर्पित करंगे सोने - चाँदी और हीरे की श्रद्धा मोटी ,
जनम से लेकर अब तक जिनका जीवन  दुनिया के असमानताओ  में गुज़र रहा हैं 
शायद मौत का ख्याल भी  उनके जेहन से उतर गया हैं ..
क्यों की लाखो की जिंदगियां अब भी मौत से बदतर है ,
पर दुनिया तो ऐसे अरबों को बनाने में ही तत्पर हैं ...