मैं एक नादाँ इन्सान हूँ ..
जो दे देता है सीट बसों और ट्रेनों में
बुजुर्गो और औरतों को ,
करता नहीं धक्का मुक्की
चढते -उतरते वक़्त बसों में , बाजार ,मेलो में
करता हूँ लाइनों में अपनी बारी की प्रतीक्षा ,
अपने सहयोगी मित्रो की करता हूँ मदद ,
बिना ये सोचे की
ये बड़ा - छोटा काम है ..
बोल जाता हूँ ..सबको आप और
देता हूँ हर इन्सान को एक इन्सान की इज्जत
बिना उसके पद और अमीरी की चिंता किये
ऑफिस में ले लेता हूँ अपने लिए पानी,
इन्तजार किये बगैर ऑफिस बॉय की
और दिखता हूँ मैं , जैसा मैं हूँ
करता हूँ अच्छे परम्पराओं और नैतिक मूल्यों का सम्मान
करता हूँ जब अपने मातृ-भाषा में बाते
और कभी संघर्षो को अपने करता हूँ याद
तो ..........
मेरे पिछड़े पन की खुल जाती है पोल
और हँसते है लोग मेरी नादानी पे
की ये किस दुनिया का वासी है?
यही मेरी बेवकूफी का प्रत्यक्ष प्रमाण है ?
और शायद हो गया हूँ मैं पागल भी
जो कर जाता है खिलाफत हर अन्याय का ,
सोच लेता हूँ अपने आस - पास की घटनाओ के बारे में
ऐसा क्यों हो रहा हैं ?
और हूँ मैं एक कायर भी ?
जो करता है अहिंसा में विश्वास
धरम के नाम पे बचता हूँ दिखावे से
तो हो गया मैं नास्तिक.. भी
शायद मुझ जैसो के लिए अब ये दुनिया नहीं रही
शायद हम बोझ हो गए हैं मानवता पर
क्यों कि अब मानवता के मायने बदल गए है .
और अब सारें नादाँ संभल गए हैं ....