सोमवार, 18 जनवरी 2010

चाँद


तुम्हारी चितवन से कितनो का कलेजा कलके ,
कोई हाथ मलता है तो कोई रह जाता है आह भरके 
तो ऐसा अनूप रूप चुप कैसे है ?
जिसके घुघंट के भीतर चाँद झलके ......
तुम्हारा घुघंट हटाया तो ...
लोग पूछने लगे कि ...
तुम्हारा क्या गुम गया है ? 
मैंने कहा  कि ..
मुझे लगा कि चाँद यही आ के छुप गया है ......


शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

लाटरी


सब समझ के मुझे नालायक
मेरी बेवकूफी पे हँसते है । ...
कागों की सभा में
हंस कहाँ सजते है ?
इस युग में सच को सच बोलना बेवकूफी है
तू पागल हो गया है
जो तुझे सच बोलने की सूझी है ......
एक दिन यूँ ही
तेरी आवाज बंद कर दी जाएगी
किसी रोज तेरी हस्ती भी
मिटा दी जाएगी
जीना है इस दुनिया में तो सबकी हाँ में हाँ मिला
परदे में रह के ही सारे गुल खिला
फिर देख इज्जत , शोहरत और दौलत
कैसे तेरे पास होगी
तू भी होगा शरीफ़ और अमीर
तेरी भी लाटरी निकल जाएगी।





लाटरी ले के यहाँ तू मौज मनायेगा
पर तू उस दरबार में कौन सा मुहँ ले के जायेगा ॥
वहां न तो तेरे पैसे काम आयेंगे ...
सारे तेरे सगे , मॉल - असबाब
यही रह जायेंगे
जाना तो है तुझको भी वहां एक दिन दरबार में
उस दिन के लिए भी कुछ बचा ले
जो तेरे साथ जाये वो भी तो कुछ कमा ले
..

गुरुवार, 7 जनवरी 2010

अपनी ज़िंदगी


पैरो तले नहीं हैं ज़मी ख्वाबो में आँसमां देखते हैं
दामन में है आसुओं का समंदर और हम गैरों की मुस्कान देखते हैं . ....
सर
पे नहीं है आशियाँ हमारे
पर दुनिया की मंजिलें और मकान देखते हैं
कब तलक देखते रहेंगे ऐसे हम दुनिया को मालिक
दुनिया में हम खुदा का निशान देखते है
अपना
चेहरा तो लगता है अब गैर सा
क्यों की आईने को हम शक की निगाह देखते है
लोग
अपने मेहबूब को पाके खुश होते है ऐसे
जैसे जन्नत की खुशिया पा लीं हो
एक हम है जो अपने मेहबूब के नफरत में भी जन्नत सा जहाँ देखते है........
उनकी
खुशियों की खातिर हर दर्द है हमे मंजूर
क्यों कि अपने आँसुओ में हम उनकी खुशियाँ तमाम देखते हैं
क्या
करे गिला शिकवा हम किसी " गैर " से
अपने
हाथों की लकीरों में जिंदगी अपनी नाकाम देखते है ..

बुधवार, 6 जनवरी 2010

ख़जाना

दुनिया के बाजार में बिकते है मिट्टी के भाव दिल
समझो जिसे रहनुमा वो होता है क़ातिल .........
कातिल के रहमो करम पे जिंदगी जो देनी है ,
करो मोहब्बत जब जिंदगी से दुश्मनी है
इश्क का दस्तूर बहुत पुराना है ,
मिलता यहाँ उम्र भर आंसुओ का ख़जाना है ..

सज़ा

रास्ते के किसी पागल से पुछो
इश्क की सज़ा क्या है?
अमीर से क्या पूछते हो जिंदगी का मज़ा
फकीर से पूछो जिंदगी का मज़ा क्या है ?
लोग हँसते है , देखकर पागलों को
तो क्या ख़ुदा तू भी उन पर हँसता होगा
कभी अपनी फ़र्जो से ले के फ़ुर्सत
उन मज्लुमो के बारे में सोचता होगा
लोग बहा रहे है, लोगों का खून बेवजह
तो क्या तू भी देख कर कभी रोता होगा ?????

नूर

खुदा के नुर को देखने दुर कहाँ जाते हो
नजरे उठा के कायनात के जर्रे - जर्रे को
देखो.......
शरमो हया से कोसो दुर नंगे छोटे बच्चे को
देखो...
मस्त राहों से गुजरते हुए फकीर को देखो ...
जिसके पास हो महबूब उसके तक़दीर को देखो॥
क्या क्या देखोगे " गैर " इन खुली आँखों से ....
आँखे बंद कर के अपने ज़मीर को देखो