यक़ीनन जिंदगी अजीब पहेली है , जितना सुलझाओ उतनी उलझती जाती है. धर्म - अधरम , जीवन - मृत्यु , सच - झूठ , सही -गलत से जरुरी होता है , इन सांसो कि डोर को संभालना , लेकिन कभी - कभी जिंदगी इतनी निराशा से भर जाती है , कि इक साँस जीवन पे भरी हो जाता है.
क्या जीना इतना जरुरी होता है कि मृत्यु से भी कष्टकर दुखो को झेलते हुए मनुष्य जीना चाहता है ?
जिंदगी से टूटे हुए आदमी के विचार कभी कभी जिंदगी का इक नया फलसफा सिखा देते है.मैंने अभी हाल ही में देखा कि लोग भीख भी अपने स्वार्थ के लिये देते है . क्यों कि अभी मै कम उम्र हूँ , तो जिंदगी के तजुर्बे सिख रहा हूँ . मैंने जिंदगी से सिखा कि जिंदगी अपने सबसे अजीज को कभी इतना गैर बना देती है , कि हम उसे ठीक से देख भी नहीं सकते , जिसके सुख दुःख के साथी रहे ओ गैर हो जाता है , उसकी परझाई भी इतनी बेगानी हो जाती है कि ओ छुई नहीं जाती . उसके कदमो कि धुल किसी भभूती से कम नहीं होती ... ये क्या है ? कितनी विचित्र है जिंदगी ............
मैंने सिखा इस जिंदगी से कि ..
१.हालत आपका भाग्य तय करते है , हालत कुछ हद तक हम बनाते है , कुछ विधि रच देती है . जिसके अनुसार तय होता है कि हमारे जीवन में प्रेम , घृणा , वात्सल्य और मानव मन के अन्य राग .
२. बचपन जीवन का ओ हिस्सा है जहाँ से हम वीर - कायर , ईमानदार- बेईमान , सज्जन और दुर्जन बनते है . प्रेम - ईर्ष्या , छल -कपट और विश्वास कि नींव भी यही पड़ती है . जब कोई बात हमारे आशा के विपरीत होती है तो हमे दुःख होता है .
अर्थात उम्मीदों का टूटना ही दुःख का कारण है , तो उम्मीद ही क्यों पाली जाये .
और जीवन का सत्य मृत्यु............ मृत्यु का कारण हर बार विधाता ही नहीं होता , और हर बार मनुष्य ही नहीं होता , और भी बड़े मानवीय कारण है जो हमारे जीवन का निर्धारण कर देते है और कई मामलो में तो हमारे अपने माता- पिता ही हमारे मौत का कारण बन जाते है . जैसे कोई अनुवांशिक बीमारी , कोई लत या कुछ ऐसा जो उन्होंने हमे विरासत में दिया हो , चाहे दुश्मनी , बीमारी या दौलत ...........
कई मामलो में मैंने देखा कि माता - पिता कई बार इतने आदरणीय नहीं होते जितना हमारे बुजुर्गो ने उन्हें बताया है . .. खैर मिलते है कुछ नए विचारो के साथ तब तक के लिये ... शुभ अलविदा ...... कुछ गलत हो तो प्लीज हमे बताये .और क्षमा करे ...
आपका अपना
ही गैर ....