आज भारत आज़ाद हैं, अंग्रेज कबके चले गए , पर मानसिकता तो यही छोड़ गए , आज भी सरकारी दफ्तरों और अफसरों में वही अंग्रेजियत भरी हैं , आम आदमीं जैसे ही सरकारी पेशे में जाता हैं वो बड़ा अंग्रेज बन जाता हैं , वो खुद को आम से खास सझने लगता हैं और समाज से ये उम्मीद करता हैं की समाज उससे खास व्यव्हार करे .
जबकि समाज के उनसे काबिल और योग्य लोग भरे हैं ,पर मौका नहीं मिलता अब , किस्मत उनकी जो उन्हें सरकारी नौकरी मिली हैं ,
हर तरफ नारे लग रहे हैं देश के तरक्की के लिए , भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के लिए , और ये आज़ादी के बाद से से ही दूर किये जा रहे हैं , लेकिन ये विकास और तरक्की सिर्फ चन्द लोगो के लिए हैं , आम लोग , जो कल भी मजदूर थे , खेतिहर थे वो आज भी वही हाशिये पे धकेल दिए गए हैं . किसान मजदूरी करने शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं , जिनके मेहनत और पसीने से खेतो में अनाज उगता हैं और जिनके हाड तोड़ परिश्रम से बड़े - बड़े माल और इमारते बनायीं जाती हैं , उनसे ही हमारा शहरी समाज घृणा करता हैं , रिक्शेवाले , दूध वाले और सब्जी वालो से देश के शहरी वर्ग का अगर नाता सहजीवता का आधुनिक रूप हैं , तो उसमे भी बहुराष्ट्रीय कंपनिया सेध लगा रही हैं , सब कुछ पैकेटो में आने लगा हैं , और देश के नेता और देशवासीयो को लगता हैं हम आधुनिक हो गए हैं , एक तो जनसँख्या की अधिकता ,और ऊपर से उनका न तो समुचित दोहन हो रहा हैं न ही समुचित प्रबंधन फिर भी विकास हो रहा हैं ? चन्द लोगो के लिए , चन्द लोगो के द्वारा और चन्द हिस्सों में , ऐसे बनेगे हम विकसित देश , अपने ही संसाधनों को त्रिस्कार कर .
हम आज आधुनिक युग के आधुनिक लोग आधुनिक संसाधनों के उपभोगी , पर हम अपने राष्ट्रीय और क्षेत्रीय भाषा के उपयोग में हिचकते हैं , अपने हर पारंपरिक संस्कारो का मजाक उड़ाते हैं , अपने परम्पराओं और भाषा का उपयोग करने वाले पिछड़े गिने जाते हैं , आधुनिक भारतीय ब्रांडेड कपडे डालता हैं , अंग्रेजी बोलता हैं अपने बीवी और बच्चो से अंग्रेजी में बाते करता हैं , और दिखावे के लिए मंदिर जाता हैं , अपने को श्रेष्ठ साबित करने के लिए जागरण करवाता हैं , श्रधा के लिए नहीं , सब बोलते हैं की " आई डोंट विलिव इन कास्ट सिस्टम " पर अब भी जातिवाद कायम हैं . कितने राजनीतिक पार्टियों की दुकान चल रही हैं इससे , और मौका दे रहे हैं हम आधुनिक लोग
क्या भारत में भी वर्ग संघर्ष की नीव पड़ने लगी हैं ? ये आने वाली आधी सदी में जातिवाद , क्षेत्रवाद और वर्गसंघर्ष तय कर देंगे की भारतीय समाज की दशा और दिशा क्या होगी ?
जबकि समाज के उनसे काबिल और योग्य लोग भरे हैं ,पर मौका नहीं मिलता अब , किस्मत उनकी जो उन्हें सरकारी नौकरी मिली हैं ,
हर तरफ नारे लग रहे हैं देश के तरक्की के लिए , भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के लिए , और ये आज़ादी के बाद से से ही दूर किये जा रहे हैं , लेकिन ये विकास और तरक्की सिर्फ चन्द लोगो के लिए हैं , आम लोग , जो कल भी मजदूर थे , खेतिहर थे वो आज भी वही हाशिये पे धकेल दिए गए हैं . किसान मजदूरी करने शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं , जिनके मेहनत और पसीने से खेतो में अनाज उगता हैं और जिनके हाड तोड़ परिश्रम से बड़े - बड़े माल और इमारते बनायीं जाती हैं , उनसे ही हमारा शहरी समाज घृणा करता हैं , रिक्शेवाले , दूध वाले और सब्जी वालो से देश के शहरी वर्ग का अगर नाता सहजीवता का आधुनिक रूप हैं , तो उसमे भी बहुराष्ट्रीय कंपनिया सेध लगा रही हैं , सब कुछ पैकेटो में आने लगा हैं , और देश के नेता और देशवासीयो को लगता हैं हम आधुनिक हो गए हैं , एक तो जनसँख्या की अधिकता ,और ऊपर से उनका न तो समुचित दोहन हो रहा हैं न ही समुचित प्रबंधन फिर भी विकास हो रहा हैं ? चन्द लोगो के लिए , चन्द लोगो के द्वारा और चन्द हिस्सों में , ऐसे बनेगे हम विकसित देश , अपने ही संसाधनों को त्रिस्कार कर .
हम आज आधुनिक युग के आधुनिक लोग आधुनिक संसाधनों के उपभोगी , पर हम अपने राष्ट्रीय और क्षेत्रीय भाषा के उपयोग में हिचकते हैं , अपने हर पारंपरिक संस्कारो का मजाक उड़ाते हैं , अपने परम्पराओं और भाषा का उपयोग करने वाले पिछड़े गिने जाते हैं , आधुनिक भारतीय ब्रांडेड कपडे डालता हैं , अंग्रेजी बोलता हैं अपने बीवी और बच्चो से अंग्रेजी में बाते करता हैं , और दिखावे के लिए मंदिर जाता हैं , अपने को श्रेष्ठ साबित करने के लिए जागरण करवाता हैं , श्रधा के लिए नहीं , सब बोलते हैं की " आई डोंट विलिव इन कास्ट सिस्टम " पर अब भी जातिवाद कायम हैं . कितने राजनीतिक पार्टियों की दुकान चल रही हैं इससे , और मौका दे रहे हैं हम आधुनिक लोग
क्या भारत में भी वर्ग संघर्ष की नीव पड़ने लगी हैं ? ये आने वाली आधी सदी में जातिवाद , क्षेत्रवाद और वर्गसंघर्ष तय कर देंगे की भारतीय समाज की दशा और दिशा क्या होगी ?