शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

कुछ बातें जो यकीं दिलाती हैं कि पगला गया हूँ मैं

आज भारत आज़ाद हैं, अंग्रेज कबके चले गए , पर मानसिकता तो यही छोड़ गए , आज भी सरकारी दफ्तरों और अफसरों में वही अंग्रेजियत भरी हैं , आम आदमीं जैसे  ही सरकारी पेशे में जाता हैं वो  बड़ा अंग्रेज बन जाता हैं , वो खुद को आम से खास सझने लगता हैं और समाज से ये उम्मीद करता हैं की  समाज उससे खास व्यव्हार  करे .
जबकि समाज के उनसे काबिल और योग्य लोग  भरे हैं ,पर मौका नहीं मिलता  अब , किस्मत उनकी जो उन्हें सरकारी नौकरी मिली हैं ,
हर तरफ नारे लग रहे हैं देश के तरक्की के लिए , भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के लिए , और ये आज़ादी  के बाद से से ही दूर किये जा रहे हैं , लेकिन ये विकास  और तरक्की सिर्फ चन्द लोगो के लिए हैं , आम  लोग , जो कल भी मजदूर थे , खेतिहर थे वो आज भी वही हाशिये पे धकेल दिए गए हैं . किसान मजदूरी करने शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं , जिनके मेहनत और पसीने से खेतो में अनाज उगता हैं और जिनके हाड तोड़ परिश्रम से बड़े - बड़े माल और इमारते बनायीं जाती हैं , उनसे ही हमारा शहरी  समाज घृणा करता हैं , रिक्शेवाले ,  दूध वाले और सब्जी वालो से देश के शहरी वर्ग का  अगर नाता  सहजीवता का आधुनिक रूप हैं , तो उसमे भी बहुराष्ट्रीय कंपनिया सेध लगा रही हैं , सब कुछ पैकेटो में आने लगा हैं , और देश के नेता और देशवासीयो को लगता हैं हम आधुनिक हो गए हैं ,  एक तो जनसँख्या की अधिकता ,और ऊपर से उनका  न तो समुचित दोहन हो रहा हैं न ही समुचित प्रबंधन  फिर भी विकास हो रहा हैं ?  चन्द लोगो के लिए , चन्द लोगो के द्वारा और चन्द हिस्सों में , ऐसे बनेगे हम विकसित देश , अपने ही संसाधनों को त्रिस्कार कर .
                              हम आज आधुनिक युग के आधुनिक लोग आधुनिक संसाधनों के उपभोगी , पर हम अपने राष्ट्रीय और क्षेत्रीय  भाषा के उपयोग में हिचकते हैं , अपने  हर पारंपरिक  संस्कारो का  मजाक उड़ाते हैं , अपने परम्पराओं  और भाषा का उपयोग करने वाले पिछड़े गिने जाते हैं , आधुनिक भारतीय ब्रांडेड कपडे डालता हैं , अंग्रेजी बोलता हैं अपने बीवी और बच्चो से अंग्रेजी में बाते करता हैं , और दिखावे के लिए मंदिर जाता हैं , अपने को श्रेष्ठ साबित करने के लिए जागरण करवाता हैं , श्रधा के लिए नहीं , सब बोलते हैं की " आई डोंट विलिव इन कास्ट सिस्टम " पर अब भी जातिवाद कायम हैं . कितने राजनीतिक पार्टियों की दुकान चल रही हैं इससे , और मौका दे रहे हैं हम आधुनिक लोग
           क्या भारत में भी वर्ग संघर्ष की नीव पड़ने लगी हैं ? ये आने वाली आधी सदी  में जातिवाद , क्षेत्रवाद और वर्गसंघर्ष  तय कर देंगे की भारतीय समाज की दशा और दिशा क्या होगी ?

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

जीवन यात्रा

सत्कर्म कीजिये , अपने परिवार, दोस्तों, को वक़्त दे उनके सुख दुःख में शामिल हो और अपने क्रोध पे नियंत्रण करने का प्रयास करे. प्रत्न्य रहे की अपने जानकारी में कोई भूका न सो पाए  किसी  की आँखों में हमारे वजह से आंसू  न आ जाये और हम किसी जीव  के कष्ट का कारण न बने . जीवन के छोटे छोटे लम्हों का आनंद ले ,बरखा की बौछारों का, शबनम  की बूंदों का, सूरज की किरणों का और चाँद की दुधिया रौशनी का भी, तो अमावस्या की अँधेरे का भी . सुख का तो दुःख भी प्रेम और नफरत दोनों का क्यों कि सब कुछ गुजर रहा हैं बहुत तेजी से और हमे पता तक नहीं चल रहा. हम मनुष्य हैं ,फिर पता नहीं क्या होंगे? कौन जाने इनका आन्नद लेने का और व्यक्त करने का मौका मिले न मिले . अपने प्रतेक दिन को यादगार बनाने की कोशिश करे , ईश्वर और पुरे मानव जाति और इस सृष्टी  के प्रति कृतज्ञ रहे जो, हमको  ये मौका मिला हैं ,ये किसी पूजा गृह में जाने  से अच्छा हैं की अपने मन -वचन और कर्म  को ही मंदिर सा पवित्र  रखे , शायद यहाँ से अलविदा लेते वक़्त सुकून रहे , जीवन का आनंद  ले तो मृत्यु के ले लिए हमेशा तैयार , बड़े बड़े काव्य , ग्रन्थ  लिख दिए गए , फिर भी मानव अब तक परेशां हैं , क्यों कि मानव ने लिखा और अपने अपने लिखे को श्रेष्ठ साबित करने में लगा रहा , पर यात्रा में  सब मुसाफिर होते हैं , कोई बड़ा कोई छोटा नहीं , किसी को सीट मिल जाती हैं तो किसी को नहीं मिलती , तो सफ़र को क्यों और कष्टमय बनाया जाये , सफ़र करते हैं ...