शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

लोकतंत्र के छेद ,जो दिखते नहीं डुबोते हैं ..


छोटी छोटी बाते जो बहूत बड़ी हैं , पर इसके  लिए कोई न ही वैचारिक विमर्श होते हैं , न ही चर्चाये , १. हम जैसे युवाओ को किसी नौकरी के लिए फार्म भरना होता हैं तो हम अपने  प्रमाण पत्रों को किसी  राज पत्रित अधिकारी के पास निरिक्षण के लिए ले जाते हैं , कई बार ओ हमे जलील(अनेको प्रकार से कभी हमारी योगता पे सवाल लगा के , कभी दोस्तों या सहकर्मियों से बतियाते हुए और हमे इन्तजार करते हुए ) कर देते है तो कुछ लोग मूल अंक पत्रों से मिला के  हस्ताक्षर कर देते हैं , देखने में ये बहूत छोटी बात हैं पर इसका मंतव्य क्या हैं ? क्या सरकार को अपने ही खोले हुए विद्यालयों और विश्वविद्यालयओ  पे भरोसा   नहीं हैं , या  ये उन अध्यापको, उन संस्थाओ  का  परिहास नहीं हैं जिनके द्वारा पढाये  हजारो छात्र  आज देश की सेवा कर रहे हैं , और वो  भी कही राज पत्रित अधिकारी हैं .
जिनके कुलपति औरआचार्यो  और प्राचार्य  महोदय लोगो की विद्वता का लोहा दुनिया जान चुकी हैं . मेरे समझ से ये अंग्रेजो के ज़माने से आ रही परम्परा हैं जो उन्होंने भारतीय लोगो के लिए की होंगी , ताकि उनकी श्रेष्ठता बनी रहे , अगर आज के युग में दुनिया इतनी आधुनिक हो गई है तो सरकार को शैक्षिक प्रमाण पत्रों की विश्वनीयता के लिए कोई और कदम उठाना चाहिए .
२.अपने ही चित्र को किसी  राज पत्रित अधिकारी से प्रमाणित करवाना ,की ये मैं ही हूँ
3.अस्पतालों  में मरीज लोग पर्ची के लिए लाइन लगते हैं , मैंने  देखा  है कई बार ज्यादे  बीमार लोग जिनके साथ कोई नहीं होता वो  लाइन में लगे होते हैं और हलके फुल्के बीमार लोग  फटा फट पर्ची ले के  चले जाते हैं , सरकार का कर्तव्य , जैसा मैंने पढ़ा  हैं किताबो में  अपने नागरिको  का जीवन सरल बनाना है ,उलटे सरकार आम आदमी की जिंदगी को कष्टकर बना बैठी है,  अगर यही जीवन हैं तो स्कूलों  में पढाये जाने वाले उन  किताबो से इन निमयो , कानूनों  और नैतिकता  की बातो को निकल देना चाहिए . उन किताबो को जला देना चाहिए जो हमे सत्य , अहिंसा  , परोपकार और सभ्यता की बाते सिखाती हैं , क्यों की जीवन  में जब ये भ्रम टूटते है तो दुःख होता हैं और आदमी वही से भ्रष्ट होने लगता हैं
4.राशन कार्ड , ड्राइविंग लाइसेंस ,  वोटर कार्ड और जन्म - मृत्यु  प्रमाण पत्रों में (जिन्हें अक्सर  लोग दर्ज कराते ही नहीं , जो करवाते हैं उनके हाल ) गलत सूचनाये भर देना ( जैसे गलत नाम , पता , उम्र या माता पिता का नाम ) , फिर इनको ठीक करने के लिए  न्यायलय के शपथ  पत्र देना , की मैं ही वास्तविक व्यक्ति हूँ .
५.भारत देश जनसख्या के मामले में विश्व में दुसरे नंबर पे हैं  पर जनसख्या को नियंत्रित करने के लिए कोई व्यापक संसाधन नहीं , भारतीय रेलवे  से ले कर , सार्वजनिक जगहों तक , यहाँ तक की अब तो शोपिंग मालों  में भी अच्छी खासी भीड़ हो रही हैं  जहाँ  से किसी  दुर्घटना के वक़्त निकलना टेडी खीर हैं.

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