इक बार फिर ख़्वाब पलकों पे सजने लगे हैं .....
कुछ दिये उम्मीदों के दिल में जलने लगे हैं ,
किस मोड़ पे जिंदगी एक बार फिर हमे लायी है
जानते है हम कि, हम इक "गैर" हैं
जिसका खुशियों से जन्मो का बैर है
अबकी खुले जो लब हँसी को पाने के लिए
आंसू फिर गिरेंगे उनको भुलाने के लिये..
क्यों कि कुछ ख़्वाब तो होते ही है ...
...
टूट जाने के लिये !