रविवार, 16 जनवरी 2011

एक जज्बात

 गर्दिश इन्सा को क्या से क्या बना देता हैं,
 एक भावुक , संवेदनशील को मुर्दा बना देता हैं ,
 गर्दिशो में बने रिश्ते बड़े अनमोल हैं ,
तख्तो- ताज से कीमती उस वक़्त के मीठे बोल हैं ,
इंसा -इंसा  के काम आ जाये तो जीवन भी सफल हैं ,

जैसा मैंने भारत को देखा 

पेट में अन्न  का दाना नहीं हैं
सर पे तपती जेठ की दोपहरी हैं
और कंधे पे सीमेंट की बोरी हैं , 
दिन भर कमाने के बाद भी मिलती नहीं मजूरी हैं .
और इंडिया बसता  हैं ऊचे -२ घरो में
जहाँ  गर्मी और सर्दी का कोई फर्क नहीं ,
बरसात की कीचड़ कोई गर्क नहीं ,



लोग अर्पित कर आते हैं मंदिरों में करोडो रुपये,
और सोने -चांदी  के जेवर
अपने ईश्वर को खुश करने को
और उसी  के रचे बन्दों से करते हैं नफरत
कभी जाती , कभी धरम और कभी  गरीबी के नाम पर 
और अब तो ईश्वर को भी  कोई अफ़सोस नहीं हैं
उसको भी इन्सान का एक बहाना मिल गया हैं ,
और दुनिया को एक नया ज़माना  मिल गया हैं

1 टिप्पणी:

  1. absolutely right.... this is the real fact, most of the ppls doing like this.
    we should help of those ppls who are suffering from such kind of problems, When will we help those ppls then our god will be happy, otherwise not......

    gud job...

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