गुरुवार, 17 जून 2010

मेरी पहचान

मैं एक नादाँ  इन्सान हूँ ..
जो दे देता है सीट बसों और ट्रेनों में
बुजुर्गो और औरतों को ,
करता नहीं धक्का मुक्की
चढते  -उतरते वक़्त बसों में , बाजार ,मेलो में
करता हूँ लाइनों में अपनी बारी  की प्रतीक्षा ,
अपने सहयोगी मित्रो की करता हूँ मदद  ,
 बिना ये सोचे की
ये बड़ा  - छोटा काम है ..
बोल जाता हूँ ..सबको आप और
देता हूँ हर इन्सान को एक इन्सान की इज्जत
बिना उसके पद और अमीरी की चिंता किये
ऑफिस में ले लेता हूँ  अपने लिए पानी,
 इन्तजार किये बगैर ऑफिस बॉय की
और दिखता हूँ मैं , जैसा  मैं हूँ
करता हूँ अच्छे परम्पराओं  और नैतिक मूल्यों का सम्मान
करता हूँ जब अपने मातृ-भाषा  में बाते
और कभी  संघर्षो को अपने करता हूँ याद
तो ..........
मेरे पिछड़े पन की  खुल जाती है पोल
 और हँसते है लोग मेरी नादानी पे
की  ये किस  दुनिया का वासी है?
यही  मेरी बेवकूफी का प्रत्यक्ष प्रमाण है  ?
और शायद  हो गया हूँ मैं  पागल भी
जो कर जाता है खिलाफत हर अन्याय  का ,
सोच लेता हूँ अपने आस - पास की घटनाओ के बारे में
ऐसा  क्यों हो रहा हैं ?
और हूँ मैं एक कायर भी ?
जो करता है अहिंसा में विश्वास 
 धरम के नाम पे  बचता हूँ दिखावे से
तो हो गया मैं  नास्तिक.. भी
शायद मुझ जैसो के लिए अब ये दुनिया  नहीं रही
शायद हम बोझ हो गए हैं मानवता पर
क्यों कि अब मानवता के मायने बदल गए है .
और अब सारें  नादाँ संभल गए हैं ....

बुधवार, 19 मई 2010

एक ज़ज्बात

दुनिया बनाने वाले क्या तू कही है ?
अगर है ,तो तेरी इस दुनिया में
तेरी औलादे इतनी ज़ालिम  क्यों है ?
इक तरफ चमचमाती इमारते तो
दूसरी  तरफ खंडहरात  क्यों है?
किसी के घरो में दो वक़्त की रोटी नहीं
और किसी के घरो में भरे हीरे - जवाहरात क्यों है ?
इक तरफ गरीबी ,भूक ,लाचारी, और बेबसी
की अँधेरी रात , तो दूसरी  ओर
एशो -आराम की खिली चांदनी  रात  क्यों है?

अगर है तो क्यों नहीं समझाता अपने बन्दों को

मत बहाए तेरे नाम पे तेरे ही बन्दों का खून
की ये तेरी ही बनाई  कायनात  है
दुनिया कहने लगी है मुझे पागल
पर तू तो बता क्या मेरे नसीब में
तुझसे मुलाकात तो है ?

शुक्रवार, 12 मार्च 2010

विचित्र है जिंदगी .............

यक़ीनन जिंदगी अजीब पहेली है , जितना सुलझाओ  उतनी उलझती जाती है.  धर्म - अधरम , जीवन - मृत्यु , सच  - झूठ , सही -गलत से जरुरी होता है , इन सांसो कि डोर को संभालना , लेकिन कभी - कभी जिंदगी इतनी निराशा से भर जाती है , कि इक साँस जीवन पे भरी हो जाता है.     
                      क्या जीना इतना जरुरी होता है कि मृत्यु से भी कष्टकर दुखो को झेलते हुए मनुष्य जीना चाहता है ?
जिंदगी से टूटे हुए आदमी के विचार कभी कभी जिंदगी का इक नया फलसफा सिखा देते है.मैंने  अभी हाल ही में देखा कि लोग भीख भी  अपने स्वार्थ के लिये देते है . क्यों कि अभी मै कम उम्र हूँ ,  तो जिंदगी के तजुर्बे सिख रहा हूँ .   मैंने जिंदगी से सिखा कि जिंदगी अपने सबसे अजीज को कभी इतना गैर बना देती है , कि हम उसे ठीक से देख भी नहीं सकते , जिसके सुख दुःख के साथी रहे ओ गैर हो जाता है , उसकी परझाई  भी इतनी बेगानी  हो जाती है कि ओ छुई  नहीं जाती . उसके कदमो कि धुल किसी  भभूती से कम नहीं होती ... ये क्या है ? कितनी विचित्र है जिंदगी ............
                     मैंने सिखा इस  जिंदगी से कि ..
१.हालत आपका भाग्य तय करते है , हालत कुछ हद तक हम बनाते है , कुछ विधि रच देती है . जिसके अनुसार तय होता है कि हमारे जीवन में प्रेम , घृणा , वात्सल्य और मानव मन के अन्य राग .
२. बचपन जीवन का ओ हिस्सा है जहाँ  से हम वीर - कायर , ईमानदार-  बेईमान  , सज्जन और दुर्जन बनते है . प्रेम - ईर्ष्या , छल  -कपट और विश्वास कि नींव भी यही पड़ती  है  . जब कोई बात हमारे आशा  के विपरीत होती है तो हमे दुःख होता है .
    अर्थात उम्मीदों का टूटना ही  दुःख का कारण है , तो उम्मीद ही क्यों पाली जाये .
और जीवन  का सत्य मृत्यु............ मृत्यु का कारण हर बार विधाता ही नहीं होता , और हर बार मनुष्य ही नहीं होता , और भी बड़े मानवीय कारण है जो हमारे जीवन का निर्धारण कर देते है और कई मामलो में तो हमारे अपने माता- पिता ही हमारे मौत  का कारण बन जाते है . जैसे  कोई अनुवांशिक बीमारी , कोई लत  या कुछ ऐसा  जो उन्होंने हमे  विरासत में  दिया हो , चाहे दुश्मनी , बीमारी या दौलत ...........
कई मामलो में मैंने  देखा कि माता - पिता कई बार इतने आदरणीय  नहीं होते जितना हमारे बुजुर्गो ने उन्हें बताया     है . .. खैर  मिलते है कुछ नए विचारो के साथ तब तक के लिये ... शुभ अलविदा ...... कुछ गलत हो तो प्लीज हमे बताये .और क्षमा करे ...
आपका अपना
ही गैर ....

सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

ख़्वाब

इक बार फिर ख़्वाब पलकों पे सजने लगे हैं .....
कुछ दिये उम्मीदों के दिल में जलने लगे हैं  ,
किस मोड़ पे जिंदगी एक बार फिर हमे लायी  है  
उम्मीद में बहारो के , आँखे  फिर ललचायी  हैं  
जानते है हम कि, हम इक "गैर" हैं 
जिसका खुशियों से  जन्मो का बैर है
अबकी खुले जो लब  हँसी को पाने  के लिए 
आंसू  फिर गिरेंगे  उनको भुलाने के लिये..
क्यों कि  कुछ ख़्वाब तो होते ही है ...
...
टूट  जाने  के लिये !

सोमवार, 18 जनवरी 2010

चाँद


तुम्हारी चितवन से कितनो का कलेजा कलके ,
कोई हाथ मलता है तो कोई रह जाता है आह भरके 
तो ऐसा अनूप रूप चुप कैसे है ?
जिसके घुघंट के भीतर चाँद झलके ......
तुम्हारा घुघंट हटाया तो ...
लोग पूछने लगे कि ...
तुम्हारा क्या गुम गया है ? 
मैंने कहा  कि ..
मुझे लगा कि चाँद यही आ के छुप गया है ......


शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

लाटरी


सब समझ के मुझे नालायक
मेरी बेवकूफी पे हँसते है । ...
कागों की सभा में
हंस कहाँ सजते है ?
इस युग में सच को सच बोलना बेवकूफी है
तू पागल हो गया है
जो तुझे सच बोलने की सूझी है ......
एक दिन यूँ ही
तेरी आवाज बंद कर दी जाएगी
किसी रोज तेरी हस्ती भी
मिटा दी जाएगी
जीना है इस दुनिया में तो सबकी हाँ में हाँ मिला
परदे में रह के ही सारे गुल खिला
फिर देख इज्जत , शोहरत और दौलत
कैसे तेरे पास होगी
तू भी होगा शरीफ़ और अमीर
तेरी भी लाटरी निकल जाएगी।





लाटरी ले के यहाँ तू मौज मनायेगा
पर तू उस दरबार में कौन सा मुहँ ले के जायेगा ॥
वहां न तो तेरे पैसे काम आयेंगे ...
सारे तेरे सगे , मॉल - असबाब
यही रह जायेंगे
जाना तो है तुझको भी वहां एक दिन दरबार में
उस दिन के लिए भी कुछ बचा ले
जो तेरे साथ जाये वो भी तो कुछ कमा ले
..

गुरुवार, 7 जनवरी 2010

अपनी ज़िंदगी


पैरो तले नहीं हैं ज़मी ख्वाबो में आँसमां देखते हैं
दामन में है आसुओं का समंदर और हम गैरों की मुस्कान देखते हैं . ....
सर
पे नहीं है आशियाँ हमारे
पर दुनिया की मंजिलें और मकान देखते हैं
कब तलक देखते रहेंगे ऐसे हम दुनिया को मालिक
दुनिया में हम खुदा का निशान देखते है
अपना
चेहरा तो लगता है अब गैर सा
क्यों की आईने को हम शक की निगाह देखते है
लोग
अपने मेहबूब को पाके खुश होते है ऐसे
जैसे जन्नत की खुशिया पा लीं हो
एक हम है जो अपने मेहबूब के नफरत में भी जन्नत सा जहाँ देखते है........
उनकी
खुशियों की खातिर हर दर्द है हमे मंजूर
क्यों कि अपने आँसुओ में हम उनकी खुशियाँ तमाम देखते हैं
क्या
करे गिला शिकवा हम किसी " गैर " से
अपने
हाथों की लकीरों में जिंदगी अपनी नाकाम देखते है ..

बुधवार, 6 जनवरी 2010

ख़जाना

दुनिया के बाजार में बिकते है मिट्टी के भाव दिल
समझो जिसे रहनुमा वो होता है क़ातिल .........
कातिल के रहमो करम पे जिंदगी जो देनी है ,
करो मोहब्बत जब जिंदगी से दुश्मनी है
इश्क का दस्तूर बहुत पुराना है ,
मिलता यहाँ उम्र भर आंसुओ का ख़जाना है ..

सज़ा

रास्ते के किसी पागल से पुछो
इश्क की सज़ा क्या है?
अमीर से क्या पूछते हो जिंदगी का मज़ा
फकीर से पूछो जिंदगी का मज़ा क्या है ?
लोग हँसते है , देखकर पागलों को
तो क्या ख़ुदा तू भी उन पर हँसता होगा
कभी अपनी फ़र्जो से ले के फ़ुर्सत
उन मज्लुमो के बारे में सोचता होगा
लोग बहा रहे है, लोगों का खून बेवजह
तो क्या तू भी देख कर कभी रोता होगा ?????

नूर

खुदा के नुर को देखने दुर कहाँ जाते हो
नजरे उठा के कायनात के जर्रे - जर्रे को
देखो.......
शरमो हया से कोसो दुर नंगे छोटे बच्चे को
देखो...
मस्त राहों से गुजरते हुए फकीर को देखो ...
जिसके पास हो महबूब उसके तक़दीर को देखो॥
क्या क्या देखोगे " गैर " इन खुली आँखों से ....
आँखे बंद कर के अपने ज़मीर को देखो