शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

लाटरी


सब समझ के मुझे नालायक
मेरी बेवकूफी पे हँसते है । ...
कागों की सभा में
हंस कहाँ सजते है ?
इस युग में सच को सच बोलना बेवकूफी है
तू पागल हो गया है
जो तुझे सच बोलने की सूझी है ......
एक दिन यूँ ही
तेरी आवाज बंद कर दी जाएगी
किसी रोज तेरी हस्ती भी
मिटा दी जाएगी
जीना है इस दुनिया में तो सबकी हाँ में हाँ मिला
परदे में रह के ही सारे गुल खिला
फिर देख इज्जत , शोहरत और दौलत
कैसे तेरे पास होगी
तू भी होगा शरीफ़ और अमीर
तेरी भी लाटरी निकल जाएगी।





लाटरी ले के यहाँ तू मौज मनायेगा
पर तू उस दरबार में कौन सा मुहँ ले के जायेगा ॥
वहां न तो तेरे पैसे काम आयेंगे ...
सारे तेरे सगे , मॉल - असबाब
यही रह जायेंगे
जाना तो है तुझको भी वहां एक दिन दरबार में
उस दिन के लिए भी कुछ बचा ले
जो तेरे साथ जाये वो भी तो कुछ कमा ले
..

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