मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

जीवन यात्रा

सत्कर्म कीजिये , अपने परिवार, दोस्तों, को वक़्त दे उनके सुख दुःख में शामिल हो और अपने क्रोध पे नियंत्रण करने का प्रयास करे. प्रत्न्य रहे की अपने जानकारी में कोई भूका न सो पाए  किसी  की आँखों में हमारे वजह से आंसू  न आ जाये और हम किसी जीव  के कष्ट का कारण न बने . जीवन के छोटे छोटे लम्हों का आनंद ले ,बरखा की बौछारों का, शबनम  की बूंदों का, सूरज की किरणों का और चाँद की दुधिया रौशनी का भी, तो अमावस्या की अँधेरे का भी . सुख का तो दुःख भी प्रेम और नफरत दोनों का क्यों कि सब कुछ गुजर रहा हैं बहुत तेजी से और हमे पता तक नहीं चल रहा. हम मनुष्य हैं ,फिर पता नहीं क्या होंगे? कौन जाने इनका आन्नद लेने का और व्यक्त करने का मौका मिले न मिले . अपने प्रतेक दिन को यादगार बनाने की कोशिश करे , ईश्वर और पुरे मानव जाति और इस सृष्टी  के प्रति कृतज्ञ रहे जो, हमको  ये मौका मिला हैं ,ये किसी पूजा गृह में जाने  से अच्छा हैं की अपने मन -वचन और कर्म  को ही मंदिर सा पवित्र  रखे , शायद यहाँ से अलविदा लेते वक़्त सुकून रहे , जीवन का आनंद  ले तो मृत्यु के ले लिए हमेशा तैयार , बड़े बड़े काव्य , ग्रन्थ  लिख दिए गए , फिर भी मानव अब तक परेशां हैं , क्यों कि मानव ने लिखा और अपने अपने लिखे को श्रेष्ठ साबित करने में लगा रहा , पर यात्रा में  सब मुसाफिर होते हैं , कोई बड़ा कोई छोटा नहीं , किसी को सीट मिल जाती हैं तो किसी को नहीं मिलती , तो सफ़र को क्यों और कष्टमय बनाया जाये , सफ़र करते हैं ...

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