सोमवार, 13 जून 2011

कुछ अपनी - कुछ दुनिया की

कोई देवदूत भी नहीं आता ,  
दुनिया के  करोड़ों मज़लूम इंसानों तक
जो भूख -लाचारी , गरीबी ,
युद्ध और आतंक के साये में जी रहे हैं अब तक,
इनके आलावा वो भी हैं जिनकी चेतना छीन ली हैं किसी ने ,
जिन्हें दुनिया कहती  हैं पागल, और देती हैं दुत्कार ,
जब जरुरत हैं उनको प्यार की ,
इबादतगाहों से झाँकता  नहीं हैं कोई
अब इनका हाल जानने को,
 उन्हें भी हैं किसी मसीहा की तलाश औरो से ज्यादे ,
पर शायद  नहीं हैं ईश्वर ,खुदा  के पास फुर्सत ,
अरे हाँ  पहले भी कहाँ  थी फुर्सत  इनके पास,
जन्म से लेकर मृत्यु तक डराने की चीज़ रहे हैं ये ,
इनका खौफ  सिर्फ गरीबो और मज़लूमो को ही होता हैं ,
जिनके पास हैं ताकत और दौलत वो इनसे कब  डरे हैं, जो अब डरेंगे , 
फिर वो क्यों  न अपनी तिजोरियां  भरेंगे ,
और जिन्हें अपने पेट भरने को  मिलती नहीं रोटी
वो कहाँ से अर्पित करंगे सोने - चाँदी और हीरे की श्रद्धा मोटी ,
जनम से लेकर अब तक जिनका जीवन  दुनिया के असमानताओ  में गुज़र रहा हैं 
शायद मौत का ख्याल भी  उनके जेहन से उतर गया हैं ..
क्यों की लाखो की जिंदगियां अब भी मौत से बदतर है ,
पर दुनिया तो ऐसे अरबों को बनाने में ही तत्पर हैं ...

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